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कर भला तो हो भला (एक सत्य कथा)।

*लस्सी!* लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई मे लगे ही थे कि एक लगभग 70-75 साल की माताजी कुछ पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गईं....! उनकी कमर झुकी हुई थी,. चेहरे की झुर्रियों मे भूख तैर रही थी... आंखें भीतर को धंसी हुई किन्तु सजल थीं... उनको देखकर मन मे ना जाने क्या आया कि मैने जेब मे सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया... "दादी लस्सी पिहौ का?" मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक... क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 2-4-5 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 35 रुपए की एक है... इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उन दादी के मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी! दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए... मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा... "ये काहे के लिए?" "इनको मिला के  पिला दो बेटा ' भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था... रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी

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नमस्कार मित्रों,     आप सभी सम्माननिय लोगों को अनिल कुमार चंद्रा शिकारीनार,जैजैपुर की तरफ से जय हिन्द   चूँकि ये मेरा पहला ब्लॉग है इसलिए मैं अपने इस ब्लोग में अभी कुछ ज्यादा नहीं लिख रहा हूँ लेकिन आप लोगों को विश्वास दिलाता हूँ कि मैं कुछ ख़ास कहानियाँ कविताएं  लाने वाला हूँ ।